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Lord krishna story in hindi || कृष्णा की 5 अद्भुत कहाणीया

1] कृष्ण और गोपियों का प्रसंग

  

एक बार की बात है, जब श्रीकृष्ण अपने बाल्यकाल में गोकुल में थे। वह अपने सखाओं और गोपियों के साथ खेला करते थे। एक दिन, गोपियों ने श्रीकृष्ण से पूछा, "कृष्ण, हमें बताओ कि जीवन में सबसे बड़ा बल क्या है?"

Krishna Vani

श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले, "सबसे बड़ा बल भक्ति और प्रेम है।" गोपियों ने पूछा, "कृष्ण, भक्ति और प्रेम से जीवन का क्या संबंध है?"


श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, "भक्ति वह शक्ति है, जो हमें ईश्वर से जोड़ती है। जब हम भक्ति में लीन हो जाते हैं, तो हमारे मन में शांति और संतोष का अनुभव होता है। भक्ति से हमें वो शक्ति मिलती है, जिससे हम जीवन की हर कठिनाई को पार कर सकते हैं। प्रेम, जो भक्ति का आधार है, वह किसी भी कठिन परिस्थिति में हमें स्थिर और मजबूत बनाए रखता है।"


गोपियों ने फिर पूछा, "कृष्ण, यह भक्ति और प्रेम कैसे प्राप्त किया जा सकता है?"


श्रीकृष्ण ने कहा, "भक्ति और प्रेम के लिए मन को स्वच्छ और निर्मल बनाना आवश्यक है। जब हम दूसरों के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखते हैं, तब हमारे भीतर भक्ति का विकास होता है। और जब हम निष्काम भाव से सेवा करते हैं, तो प्रेम और भक्ति का मिलन होता है।"

राधा कृष्ण की कहानी


गोपियों ने यह सुनकर अपने हृदय में प्रेम और भक्ति को स्थान दिया और श्रीकृष्ण के प्रति अपनी आस्था और भी प्रगाढ़ हो गई।


सीख:

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में प्रेम और भक्ति ही सबसे बड़ा बल है। अगर हम अपने दिल में प्रेम और भक्ति को स्थान देंगे, तो हमारे जीवन में शांति, संतोष और शक्ति बनी रहेगी। कठिनाइयाँ चाहे कितनी भी बड़ी हों, प्रेम और भक्ति के साथ हम उनका सामना कर सकते हैं। 

इस कहानी के माध्यम से श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि आत्मा की शक्ति भक्ति और प्रेम में ही निहित है, और यही हमें सच्चा बल प्रदान करती है।


2] कृष्ण की कहानी: गोवर्धन पर्वत का चमत्कार

वृंदावन की सुंदर भूमि में, लोग इंद्र देवता की पूजा करते थे, यह मानते हुए कि वही उनके खेतों को पानी देने वाली वर्षा के देवता हैं। लेकिन छोटे कृष्ण, जो अपनी उम्र से कहीं अधिक बुद्धिमान थे, ने इस परंपरा पर सवाल उठाया। उन्होंने ग्रामीणों को समझाया कि वास्तव में गोवर्धन पर्वत ही उन्हें हरी-भरी घास, ताजे पानी, और समृद्ध संसाधन प्रदान करता है, न कि इंद्र देवता।


कृष्ण के वचनों से प्रभावित होकर, ग्रामीणों ने इंद्र की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का निर्णय लिया। यह देखकर इंद्र क्रोधित हो गए, क्योंकि उन्हें अपनी भक्ति में आई इस कमी का अपमान महसूस हुआ। गुस्से में आकर, उन्होंने वृंदावन पर एक भयानक तूफान छोड़ दिया, जिसमें तेज़ बारिश और आंधी-तूफान ने पूरे गाँव को बहा ले जाने की धमकी दी।


लेकिन दयालु और रक्षक कृष्ण ने तुरंत कार्रवाई की। उन्होंने अपने छोटे से अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया, और उसके नीचे एक विशाल छतरी बना दी, जिसमें सभी ग्रामीण और उनके पशु शरण ले सके। सात दिनों तक कृष्ण ने इस पर्वत को उठाए रखा, और इंद्र के क्रोध से सभी को बचाया।


कृष्ण की इस दिव्य शक्ति को देखकर, इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने वृंदावन आकर कृष्ण के सामने सिर झुकाया और उनसे क्षमा मांगी। कृष्ण, जो सदैव दयालु और क्षमाशील थे, ने इंद्र को माफ कर दिया और धरती पर शांति बहाल की।


गोवर्धन पर्वत के इस अद्भुत चमत्कार ने न केवल वृंदावन के लोगों की रक्षा की, बल्कि उन्हें भक्ति, विनम्रता, और प्रकृति की रक्षा का महत्व भी सिखाया। 

गोवर्धन पर्वत की यह कहानी हिन्दू पौराणिक कथाओं में सबसे प्रिय कथाओं में से एक है, जो हमें भगवान कृष्ण के अनंत प्रेम और शक्ति की याद दिलाती है।इस घटना के बाद, हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को गोवर्धन पूजा का आयोजन किया जाने लगा। 

इस दिन, लोग गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाकर उसकी पूजा करते हैं, और भगवान कृष्ण की इस लीला को याद करते हुए भोग अर्पित करते हैं। इस पूजा में अन्नकूट का विशेष महत्व होता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के अन्न और पकवानों को पर्वत की आकृति में सजाकर भगवान को अर्पित किया जाता है।

गोवर्धन पर्वत की इस कथा से हमें यह

 सीख मिलती है कि सच्ची भक्ति का मार्ग वही है जो हमें कर्तव्य, प्रेम और प्रकृति के प्रति आस्था से जोड़ता है। कृष्ण का संदेश स्पष्ट था कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए भव्य पूजा या यज्ञ की आवश्यकता नहीं, बल्कि सच्चे मन से किया गया एक छोटा सा प्रयास भी भगवान की कृपा पाने के लिए पर्याप्त है।


3] श्रीकृष्ण की भक्ति, त्याग और बुद्धिमत्ता 

यह कहानी महाभारत काल की है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति, त्याग और बुद्धिमत्ता के दर्शन होते हैं।


जब महाभारत का युद्ध आरंभ होने वाला था, तो दोनों पक्षों, पांडव और कौरव, ने श्रीकृष्ण से सहायता मांगी। श्रीकृष्ण ने दोनों को दो विकल्प दिए: एक उनका स्वयं का समर्थन, और दूसरा उनकी नारायणी सेना का। दुर्योधन ने उनकी विशाल और शक्तिशाली नारायणी सेना को चुना, जबकि अर्जुन ने स्वयं श्रीकृष्ण को चुना, हालांकि श्रीकृष्ण ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे।


यह निर्णय दर्शाता है कि अर्जुन को श्रीकृष्ण की दिव्यता और ज्ञान पर पूर्ण विश्वास था। युद्ध के दौरान, जब अर्जुन ने अपने प्रियजनों के खिलाफ युद्ध करने से इंकार कर दिया, तो श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। गीता में उन्होंने कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग के माध्यम से जीवन का सत्य समझाया। अर्जुन को समझाया कि युद्ध धर्म और अधर्म के बीच है, और उसे अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, बिना परिणाम की चिंता किए।


श्रीकृष्ण का यह उपदेश न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि पूरे संसार के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत बन गया। उन्होंने सिखाया कि सच्चा कर्म वही है जो बिना किसी फल की अपेक्षा के किया जाए, और सच्ची भक्ति वही है जो समर्पण और प्रेम से हो।


इस कहानी का संदेश है कि जीवन में जब भी कोई कठिनाई आए, तब हमें अपनी बुद्धिमत्ता, धैर्य और ईश्वर पर विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए। श्रीकृष्ण के उपदेश आज भी हमें सही दिशा में जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।



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